Editorial: श्रीनगर के लाल चौक में आतंकियों की कायराना हरकत
- By Habib --
- Monday, 04 Nov, 2024
Cowardly act of terrorists in Lal Chowk Srinagar
Cowardly act of terrorists in Lal Chowk Srinagar: जम्मू-कश्मीर में नई सरकार के गठन के बाद जिस प्रकार से आतंकी वारदातें बढ़ी हैं, वे बेहद चिंताजनक और किसी बड़ी साजिश की ओर इशारा करती हैं। यह गौर करने लायक बात है कि पाकिस्तान की ओर से जम्मू-कश्मीर में एक लोकतांत्रिक सरकार के गठन के दौरान किसी प्रकार की बयानबाजी नहीं की गई।
हालांकि अब अंदर ही अंदर राज्य के तमाम हिस्सों में आतंकी अपने कारनामे अंजाम देेने में जुटे हैं। जैसे उन्हें बेहद खामोशी के साथ इसका इशारा किया गया था कि अभी चुनाव हो जाने दो, सरकार गठित हो जाने दो, इसके बाद अपना असली रंग दिखाना। इस दौरान नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला भी सरकार के गठन के बाद किसी बड़ी साजिश की आशंका जता चुके हैं। हालांकि अभी यह पता नहीं है कि वे देश के अंदर से इस आशंका की शिकायत कर रहे हैं या बाहर से। बीते दिनों में उन्होंने पाकिस्तान से बातचीत का राग अलापा था, लेकिन अब वे किसी साजिश की ओर इशारा कर रहे हैं।
जैसे इसका इंतजार हो रहा था कि श्रीनगर के लाल चौक में हादसा होगा। दिवाली पर इस जगह पर लोगों ने जिस प्रकार हजारों दीए जलाकर कश्मीर की खुशहाली की प्रार्थना की थी, वह जैसे देश और घाटी के दुश्मनों को रास नहीं आई। उसी समय जैसे इसकी आशंका हो गई थी कि इस चौक में जल्द कुछ ऐसी वारदात अंजाम दी जा सकती है। रविवार को इसी चौक में आतंकियों ने बम विस्फोट किया है, जिसमें अनेक लोग घायल हुए हैं। पूरी कश्मीर घाटी में इस समय इस प्रकार की वारदातें हो रही हैं और सुरक्षा बल जी-जान लगाकर उन्हें रोकने में लगे हैं। निश्चित रूप से यह सभी के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण है, लेकिन क्या इसी प्रकार के हालात घाटी में बने रहेंगे। क्या कश्मीर के लोग एक लोकतांत्रिक सरकार चुनने की सजा भुगत रहे हैं। घाटी में जब विधानसभा चुनाव के नतीजे आए थे, तब कहा गया था कि पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद अब घाटी से पूरी तरह खत्म हो चुका है, क्योंकि प्रदेश की जनता भी यही चाहती है कि वह विकास के रास्ते पर आगे बढ़े, न कि आतंकवादियों के मंसूबों को पूरा होने में उसकी सहभागी बने।
कुछ समय पहले तक इसी राज्य में हालात ऐसे थे कि चुनाव का नाम लेना तक संभव नहीं था। ऐसा इसलिए था क्योंकि चुनाव जैसे हालात ही नहीं थे। यह सब परिवर्तन राज्य में अनुच्छेद 370 के खात्मे के बाद हुआ है और केंद्र सरकार ने जिस प्रकार राज्य में स्थायी स्थिरता और शांति कायम करने के लिए निरंतर प्रयास किए हैं, उसके बाद अब यहां जहां आतंकवाद पर नकेल कसी जा चुकी है, लेकिन अब फिर से आतंकवाद का सिर उठाना चिंताजनक है। घाटी में रह-रहकर आतंकी वारदातें सामने आ ही जाती हैं। और अब आतंकियों ने जम्मू पर भी अपना फोकस कर लिया है।
पाकिस्तान के लिए यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि वह खेल के मैदान में चोट खाता है तो युद्ध के मैदान में पस्त हो जाता है। वह हर उस कोशिश को अंजाम देता है, जिससे भारत को नुकसान हो, लेकिन फिर भी हस्ती मिटती नहीं हमारी की तर्ज पर भारत की आन-बान और शान कायम रहती है। यह भारत है, जहां लोकतंत्र के महापर्व के जरिये इतनी शांति और सुगमता से सरकार बन जाती है, या बदल जाती है। क्या यह सब पाकिस्तान बर्दाश्त कर सकता है।
लोकतंत्र में जन प्रतिनिधित्व ही सबकुछ होता है, कुछ समय पहले तक विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से ऐसे आरोप लगाए गए थे कि केंद्र सरकार घाटी में चुनाव नहीं करवाना चाहती। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी एवं अन्य केंद्रीय नेता अनेक बार इसका विश्वास दिला चुके हैं कि राज्य में हालात को सामान्य बनाने के लिए हर संभव कार्य किया जाएगा। अब राज्य में विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और उन सभी आलोचकों के मुंह बंद हो चुके हैं, जोकि घाटी से लोकतंत्र खत्म होने जैसी बातें कर रहे थे। निश्चित रूप से घाटी का मामला बेहद संवेदनशील है और इसे संभालने के लिए मौजूदा केंद्र सरकार को सभी प्रयास करने पड़ रहे हैं। लेकिन इस बीच घाटी में आतंकी वारदातों की रोकथाम के लिए मजबूत प्रयास करने जरूरी हैं।
जम्मू-कश्मीर सरकार और केंद्र सरकार को मिलकर संयुक्त रूप से अब आतंकवाद के खात्मे के लिए काम करना होगा। वैसे, सेना की ओर से अभी घाटी में जो मुहिम चलाई जा रही है, वह आतंकियों पर भारी पड़ रही है, लेकिन फिर भी उनकी कायराना हरकतें जारी हैं। जिनका जवाब दिया जाना जरूरी है।
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